सीता स्वयंवर
सीता स्वयंवर, है सीय शक्तिस्वरूपा किरण पुंज।
जनकपुरी में ये आयोजन अखंड शक्ति का कुंज।।
सीता ने जब शिव धनुष को यूँ ही सरकाया।
समझे राजा जनक, तो शक्ति स्वयंवर करवाया।।
देश देश के राजाओं से हिला नहीं दिव्य धनुष।
राम के हाथों उठा और टूट गया वो शिव धनुष।।
हर्ष हुआ जनकपुरी, जानकी का मन भी कुसुमित।
पुष्पवर्षा की देवों ने, वरमाला सीता राम वरित।।
सभा मे क्रोधित दौड़ आये ऋषी परशुराम भी।
जवाब दो राजा, तोड़ सके कोई शिवधनुष भी।।
टनकार हुई जब हिमालय, शिव शंकर मेरे इष्ट।
नष्ट कर दूँ सभा को, फिर होगा यहाँ यह अनिष्ट।।
देख क्रोध परशुराम, राजा जनक लगे समझाने।
श्री राम के मीठे वचन सुन, लगे परशुराम मुस्काने।।
सीताराम हुआ विवाह सपन्न, राजा दशरथ आये।
चारो भ्राताओं संग, चारो राजकुमारीयाँ लाये।।
(जय जय राम जय श्री राम)
पुस्तक- “त्रेता के प्रभु श्री राम” से
(लेखक- डॉ शिव लहरी)