धन या ध्यान। ~ रविकेश झा

धन कुछ देर के लिए खुशी दे सकता है सुखी कर सकता है बाहरी खुशी दे सकता है लेकिन पूर्ण तृप्ति नहीं पूर्ण नहीं संतुष्टि नहीं दे सकता है। इसीलिए धन के महत्व को समझना पड़ेगा हम सब अक्सर धन पैसा के पीछे भागते हैं और सुनते भी है पढ़ते भी है धनवान होना ही सफलता है, जिसके पास जितना धन उसको उतना प्रतिष्ठा मिलता है पद मिलता है समाज में, कुछ लोग ईमानदारी से कुछ लोग बेईमानी से चोर वही जो पकड़ा जाए इस सूत्र के को याद रखना होगा, चरित्रवान भी ऊपर ऊपर से बस अंदर से वासना दौड़ती रहती है। हम सब को बोला जाता है ये चीज़ मत करो ऐसा करो ऐसा नहीं, और ये बात एक मन को समझ आ जाता है लेकिन अन्य मन साथ नहीं देता हम थोड़े देर के बाद दौड़ने लगते हैं और जितना रोकने का प्रयास करते हैं उतना और बढ़ जाता है। इसीलिए हमें बताया जाता है ये काम मत करो बुरा है पाप लगेगा, पहली बात तो बोलने से कुछ होगा नहीं कोई असर नहीं पड़ेगा, दूसरी बात पाप नहीं आप स्वयं नर्क में है अब इससे बड़ा पाप क्या होगा, कहीं अलग से मिलने वाला नहीं पाप पुण्य स्वर्ग नर्क, जी कैसे रहे हैं इस पर निर्भर करता है दोनों पहलुओं। इसीलिए रूपांतरण पर ध्यान देना होगा, अपना ही अंग हैं इन्द्रियां हैं घृणा क्यों रोकना क्यों और कैसे क्रोध क्यों, इसीलिए देखना होगा अनुभव के साथ उतरना होगा फिर आप स्वयं रूपांतरण हो जायेंगे, रटना नहीं होगा मानना नहीं होगा किसी का पक्ष नहीं बीच में, न बुरा न अच्छा, संज्ञा देना ही नहीं है। हमें बताया जाता है धन पैसा का ही यहां मूल्य अधिक है वह गलत कह रहे हैं असत्य कह रहे हैं क्योंकि उन्हें बस धन से सब कुछ मिला है बाहरी खुशी अंदर और आंतरिक का कुछ पता नहीं अनुभव नहीं कुछ, दृष्टि जहां तक ले जाओगे वहीं तक सीमित रहेंगे न। हम बुद्धि में जीने वाले लोग हैं जो देखते हैं बस उसे हासिल करने में लग जाते हैं ईमानदारी से या बेईमान से लग जाते हैं भीड़ में। जो देखते हैं बाहर बस कैसे भी हासिल करना है मोदी जी के तरह पद नाम प्रतिष्ठा डिग्री धार्मिक बुद्धिमान जो और महापुरुष को मिला है हमें भी मिले चाहे कैसे भी मिले झूठ बोलकर या सत्य। दोनों का कोई मूल्य नहीं है वास्तव में। लेकिन फिर भी हम सब दौड़ में शामिल होते हैं सोचते हैं कुछ हाथ लग जाएगा कुछ मिल जाएगा लेकिन हाथ कुछ लगता नहीं अंत तक, पानी पर खींची गई लकीर के तरह क्षणभंगुर बस। लेकिन हमारी आंख खुलती क्यों नहीं है हम बेहोशी में क्यों जीते रहते हैं। एक तो अज्ञान के कारण और दूसरा ज्ञान तो हो गया लेकिन अहंकार हो गया, कुछ मिल गया अब शरीर ने किया है भौतिक ने भौतिक वस्तु प्राप्त कर लिया तो अहंकार होगा क्योंकि सूक्ष्म से अभी अवगत नहीं है। तो होगा ही और तीसरा भय के कारण हम कुछ जानते हैं लेकिन लोग क्या कहेंगे या उन्हें पसंद नहीं आयेगा तो हमला करेंगे समाज बॉयकट करेंगे प्रदर्शन करेंगे नाम खराब होगा, हिंसा सबके डर से चुप रहते हैं लेकिन ऐसा बहुत कम लोग होते हैं जिन्हें जागरूकता है जो कुछ जान लिए हैं वह मौन हो जाते हैं। और कुछ बोलते हैं सोचते हैं कुछ तो पक्ष में होगा देखा जाएगा जो भी होगा पुलिस है न कानून है लोग हैं देखा जायेगा, जोश में आ जाते हैं। एक बात को समझो हम कुछ करेंगे चाहे बाहर चाहे भीतर, शरीर में या मन में, कुछ न कुछ करेंगे सोचेंगे विचार में रहेंगे या शरीर में हिंसा या करुणा। धन हमें खुश कर सकता है आनंदित नहीं मूर्ख धन के पीछे भागते हैं और बुद्धिमान पद नाम के पीछे और ध्यानी व्यक्ति भीतर जाता है स्वयं से परिचित होने के लिए, फिर मौन हो जाता है या सार्थक बातें करता है जिससे सबका आंतरिक भला हो, निष्काम में आ जाता है। लेकिन हम सब दुखी हैं क्रोधी भी प्यासा भी जो देखते हैं अपने मतलब का बस इच्छा पूरा करने लगते हैं। हम सब अपने आप को बुद्धिमान समझते हैं लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है साहब😍 हम जितने बुद्धिमान बनते जायेंगे उतना मूर्ख भी पहलू के तरह, हमें बीच में होना है न मूर्ख न बुद्धिमान अगर चुनना हो तो दोनों को नहीं तो मौन रहो। कुछ लोग सोचते हैं नाम हो जायेगा तो लोग याद करेंगे पहली बात कितना दिन और करेगा कौन, आपके ही बच्चे कितने दिन करता है या आप ही कितना दिन, अब बोलोगे भोग न करना हो तो हम डेली करेंगे याद सब मूर्ख की बात है। करेगा कौन शरीर, मन या आत्मा एक दूसरे को देख कर खुश होना है बस कौन कितना बड़ा बाज़ी मारा कौन कितने उच्च शिक्षा प्राप्त किया कौन अपने आप को जानने में सक्षम हुआ और खुद को ही न खुद के पदार्थ को ऊर्जा को चेतना को पांचों तत्वों को जाना पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश को और जानने वाला कौन है दृष्टा कौन है कौन जान रहा है कौन देख रहा है कौन खोज कर रहा है। इसीलिए कहता हूं कि ध्यान के साथ काम करो तभी अज्ञान से परे उठोगे और मौन हो जाओगे। अभी हलचल है मन परेशान करता है न कि सहयोग इसीलिए हम सब घबराए हुए हैं। ओशो कहते हैं कि दौड़ोगे तो कुछ मिल जाएगा और स्थिर होगे तो मिलाने वाला मिल जायेगा। हम सब कुछ सार्थक कार्य कर सकते हैं निष्काम के साथ जिसमें हम लिप्त न हो। लोग अक्सर कहते हैं कि कुछ बनना है हमें जीवन में कुछ करना है सब पानी पर खींची गई लकीर है बस और कुछ नहीं, अगर होश से देखोगे तब पता चलेगा अन्यथा नहीं। जीवन बड़ी उपलब्धि के लिए नहीं है बल्कि जीने के लिए है मौज करने के लिए है आनंदित होने के लिए है, प्रेम करुणा बांटने के लिए है जितना दोगे उतना मिलेगा, ये जीवन कोई बाहरी बैंक के तरह नहीं है गिन कर नहीं बल्कि लुटा दो प्रेम, बढ़ेगा अंदर से आप खिल उठेंगे प्रेम बढ़ता जायेगा कोई सीमा नहीं है तौलने का कोई तराजू नहीं। ध्यान करोगे तभी पता चलेगा अंदर की बात आंतरिक अनुभव भी लो बाहर का अनुभव मृत्यु के बाद समाप्त हो जायेगा, इसीलिए मैं ये नहीं कहता कि ये छोड़ दो, कुछ करोगे ही इसीलिए करो, लेकिन होश से, और फिर अंदर आने का कष्ट करो अंदर का अनुभव लाना आवश्यक है कंपलसरी है अगर मृत्यु से परे जाना है तो, नहीं तो भोग करो उड़ो हवा में फेंको बस कुछ लोग को खुश करो आनंदित तो कर सकते नहीं और हो भी नहीं सकते इसीलिए बेहोशी में जिओ खुश होते रहो और फिर दुखी।
तुम कुछ धन पद प्रतिष्ठा कमा लिए तो क्या उखाड़ लिए, बस कचरा जमा कर लिए, पहली बात तो कॉपी पेस्ट का है, बईमान का है, और अगर क्रिएट भी किए तो कोई खास उपलब्धि नहीं, सब क्षणभंगुर है, और तुम्हें नाम पद प्रतिष्ठा धन देने वाला कौन है दे कौन रहा है और मिल किसको रहा है एक बार आंख तो घुमा कर देखो। इसीलिए मैं तुम्हें गंभीर रूप से नहीं लेता, मैं महत्व नहीं देता, तुम अभी पदार्थ और ऊर्जा को सत्य मानते हो, चेतना का कोई अनुभव नहीं, तुम लाख कमा लो या करोड़ कोई फर्क नहीं पड़ने वाला जब तक स्वयं का खोज न करो सब व्यर्थ है। तुम बस काम को महत्व देते हो क्योंकि इंद्रियां में तनाव है करुणा कैसे करोगे उसके लिए झुकना भी पड़ता है और तुममें अकड़ भी है क्रोध भी स्वयं पर कर रहे हो स्वयं को नुकसान पहुंचा रहे हो स्वयं को तबाह कर रहे हो। सत्य बात यह है कि आप बस काम में जीना चाहते हैं न की निष्काम में निष्काम पता भी नहीं, निष्काम क्रोध घृणा रहित है और तुम अंदर से क्रोध ईर्ष्या से भरे पड़े हो कैसे तुम करुणा करोगे संघर्ष और धन को देखने लग जाते हैं धन के मोह में फंस जाते हो या तो धन को देखोगे या व्यक्ति को या तो अपने लिए करोगे या दूसरे के लिए दोनों में कामना करुणा है तुम ईश्वर को कैसे धोका दे दोगे हां स्वयं को दे सकते हो लेकिन भगवान परमात्मा को नहीं। इसीलिए कहता हूं ध्यान करो ना कि अंधभक्ति, प्राथना करोगे, प्राथना का अर्थ क्या है आप जो कर रहे हैं प्रभु मुझे संदेह है ऐसे होना चाहिए ऐसे नहीं ये गलत है यह सही है वह पापी है और हम पुण्यकर्ता भगवान को भी ज्ञान देने लगते हैं, प्रभु जो दे रहे हैं वह कम है और मिलना चाहिए कम से कम शांति ही मिलना चाहिए कैसे भी हम ज्ञान देने लगते हैं क्योंकि हम स्वयं को ज्ञानी समझते हैं कैसे आदत को छोड़ेंगे। प्राथना क्यों करते हैं भगवान को आंख नहीं है या दुःख दर्द महसूस नहीं होता आप ही बताओ प्रभु के सामने आप क्या करते हैं करुणा की बात या कामना की बात दो ही चीज़ आप करते हैं जीवन भर। फिर भी सबक नहीं मिलता उसका कारण है एक ही कारण है वह है बेहोशी मूर्छा, कैसे भी जीवन जीना है मूर्ख बनने में हमें मज़ा आता है। मूर्ख को कभी नहीं लगेगा कि वह मूर्ख है क्योंकि मन शरीर को सच मानता है उसे जो दिखता है वह उसके लिए लड़ता है जीता है, कुछ को और दिखाई दिया वह उसे हासिल करने में लग गए वह बुद्धिमान समझने लगेगा, लेकिन बुद्धिमान को ये लग सकता है कि वह मूर्ख है क्योंकि वह जानता है काम काम है चाहे उस इन्द्रियां से करे चाहे कुछ और से वह स्वयं पर हंसने लगेंगे, लेकिन मूर्ख क्रोधित हो जायेंगे। मूर्ख को अगर पता होता कि वह मूर्खता कर रहे हैं तो वह गंभीर कभी नहीं होंगे वह निष्काम में जिएंगे वह हंसते रहेंगे वह शरीर को सच नहीं मानेंगे।
लेकिन हम सब जल्दी में रहते हैं हमें भय भी है हमें अकेले जीने में डर लगता है हम इसी प्रकार मूर्खता में प्रवेश करते रहते हैं और दूसरों पर भी अपना अर्धज्ञान सौंपते रहते हैं मैं जो कहता हूं वह करो नहीं तो निष्कासित कर देंगे समाज से त्याग देंगे, घृणा करेंगे लेकिन मनुष्य बनाने वाले से नहीं, जिसने चेतन मन का निर्माण किया सूर्य का निर्माण किए उनसे हम विद्रोह नहीं कर सकते हैं क्योंकि हमें संसार में रहना है और दूसरों को जबरदस्ती ज्ञान देना है बस हम अपने से कमज़ोर को शिकार बनाते हैं सबको नहीं, अमीर को नहीं मोदी जी के तरह, डराने लगते हैं ईश्वर के नाम पर लोग डरने भी लगते हैं लेकिन कोई जानने वाला अगर विरोध करने लगे तो उसे जेल में डाल दो, नाम खराब कर दो वोटर स्वयं अपने तरफ आ जायेंगे। नहीं ऐसा सत्य नहीं है सत्य कुछ और है लेकिन वर्षो से हम लीपा पोती में रहने के आदि वाले व्यक्ति है हमें बस सत्य असत्य को तोता के तरह दोहराना है। आप जितने बड़े पद पर होंगे उतना आपमें मोह और पद का घमंड होगा अगर आप जागरूकता के साथ न रहे तो, जागरूकता ही आपको निष्काम पर ला सकता है लेकिन हम पद धन नाम के लिए तो जीते हैं, धन नहीं तो पद, पद नहीं तो नाम, कामना वाला नाम नहीं तो करुणा वाला, तानाशाह नहीं तो महान बनना है, बनना है, अपने लिए नहीं तो दूसरों के लिए, दो पद है अर्जुन और दुर्योधन के तरह, काम या राम, आप अपना पेट नहीं भरेंगे दूसरों का भरने में लग जायेंगे, करुणा को हथियार बनाएंगे, गांधी जी भी धरना प्रदर्शन में रुचि लेते थे हिंसा में नहीं, भूख हड़ताल, आप दूसरे को कष्ट नहीं देना चाहते लेकिन स्वयं के शरीर को दे रहे हैं आप अपने शरीर को अपना प्रॉपर्टी कैसे मान लिए। कहने का मतलब यह है कि करुणा और कामना दोनों बेकार है जब तक ध्यान में प्रवेश न करें तब तक बस अर्थ रहेगा शून्यता नहीं अर्थ निकालना आसान है शून्यता होने में हिम्मत का काम है। मैं पहले भी बोल चुका हूं या तो आप कामना में रुचि लेंगे या करुणा में लेकिन याद रखें दोनों एक साथ चलता है काम दोनों में है, करुणा करेंगे तो दूसरों को सुख देगें जब ही हम कुछ क्रिया में प्रवेश करेंगे फिर काम हो गया, चाहे आप केला न खाए फ़ोटो शूट करें दूसरे खायेंगे ये कामना हुआ आप केला दिए ये करुणा हुआ, आप केला तोड़ के लाए कमान हुआ, फ़ोटो शूट का मन हुआ कामना हुआ, आप करुणा कम कामना अधिक करते हैं। फिर रात होता है रात का तो आप सब दिन भी रात भी स्वप्न देखते हैं कब स्त्रियां के पास जाऊं कैसे भोग करूं। आप करते क्या हैं उस इन्द्रियां में कभी तो कभी दूसरे में दिन रात बस लेना लेने में लग जाते हैं हम सब। जीवन ऐसे नहीं चलता साहब आप जबरदस्ती खींच रहे हैं हृदय का काम है मानना जब ही कोई बात पसंद आए या हम हृदय में रहते हैं नापसंद में भी बस वह मूर्छा जाता है उपस्थिति बदल जाता है। इसीलिए मानना उधार का काम है जानना अनुभव का इसके लिए हिम्मत चाहिए लेकिन हमें समाज में भी रहना है मन में आप सभी जानते हैं कि मैं क्या लिख रहा हूं लेकिन भौतिक से आप भागते हैं वह है भय, या संदेह, संदेह कितने बार मिटाओगे भय ही है मैं कहता हूं ना।
जो भय में रहते हैं वह मेरा साथ नहीं देंगे, वैसे मैं किसी का साथ चाहता भी नहीं, सामाजिक भय पद प्रतिष्ठा नाम कैसे छोड़ोगे, नहीं होगा, क्योंकि अभी कामना बचा हुआ है। मैं किसी का परवाह नहीं करता या तो आप क्रोध घृणा करेंगे या करुणा प्रेम मैं दोनों में आनंदित रहूंगा। लेकिन आप नहीं हो सकते क्यूंकि आप अभी शरीर मन में जी रहे हैं और मैं सब के परे अंतर तो है कैसे आप मेरा सहयोग करेंगे भय का फिर क्या होगा घृणा का क्या होगा आप ही लोग है जो अभी तक घृणा क्रोध को बचा रखे हैं। जो आपके पास होगा वह आप देंगे आप जो मन में रखेंगे वही बाहर निकलेगा। शुद्धि का कोई चिंता नहीं बस वासना। शरीर रहे या ना मैं सत्य से समझौता नहीं कर सकता। झूठ नहीं, मैं तो कुछ बात को जानबूझ के नहीं बोलता फिर नेता सब पर विश्वास नहीं रहेगा। मैं आतंकवाद और गुंडा पर बोलना चाहता हूं लेकिन कुछ का नाम लेना होगा मैं अभी समय दूंगा रूपांतरण के लिए लेकिन कब तक, सत्य तो बोलूंगा आप लोग चिल्लाएंगे क्रोध आएगा मैं क्या करूं मैं भी मजबूर हूं सत्य ऐसा ही है। जिनको मुझसे समस्या है वह दूर रहे अगर हो सकते हैं तो नहीं तो बस सुनते रहे, या आप मुझे पसंद करेंगे या नापसंद क्रिया काम दोनों में है, उपस्थिति बदल रहा है बस और कुछ नहीं, कुछ लोग शरीर में नहीं मन में, कुछ लोग इनबॉक्स में कुछ लोग आत्मिक से कुछ हृदय से घृणा या प्रेम। मैं सबमें प्रसन्न रहूंगा आप भी आनंदित हो सकते हैं बस ध्यान के साथ कनेक्ट होना होगा।
ध्यान करते रहें साहब मौका है अभी मार दो चौका ध्यान का फिर रहो आनंदित रहो होश में रहो पूर्ण संतुष्ट रहो पूर्ण प्रेमी।
ध्यान के साथ पढ़ने और सुनने के लिए हार्दिक आभार।
धन्यवाद।
रविकेश झा,
🙏❤️