*जय केरल (राधेश्यामी छंद)*

जय केरल (राधेश्यामी छंद)
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1)
राज्य पुरातन राजा बलि का, सुंदर केरल कहलाता है।
ओणम का है त्यौहार मधुर, स्वागत-उत्सव मन भाता है।।
2)
पेड़ों की यहॉं नारियल के, कुछ छटा अनूठी पाते हैं।
केले के पावन पेड़ यहॉं, घर-घर में लोग लगाते हैं ।।
3)
यह वेम्बनाड की झील बड़ी, कुछ ओर-छोर कब पाओगे।
तट है कुमारकॉम मधुरिम, देखते इसे रह जाओगे।।
4)
घर दफ्तर और दुकानों पर, मलयालम प्यारी चलती है।
अलबेली मस्ती सागर की, यह मस्ती कभी न ढलती है।।
5)
कथकली मोहिनीअट्टम शुभ, मंडप में प्रतिदिन होते हैं।
यह अभिनय-नृत्य अनूठे हैं, यह बीज सनातन बोते हैं।।
6)
यह मार्शल आर्ट ‘कलारी’ है, केरल की कला कहाई है।
सबसे पहले यह दुनिया में, केरल ही में तो आई है।।
7)
केरल में दिन दो-चार रहो, मन सब प्रसन्न हो जाएगा।
सच्चे दिल के हैं लोग यहॉं, दिल उनसे मिल हर्षाएगा।।
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश मोबाइल 9997615451
( नोट: हमने 28 मार्च से 31 मार्च 2025 तक कुमारकॉम लेक रिजॉर्ट, केरल में रहकर वेंबनाड झील का आनंद लिया। फोर्ट कोची भ्रमण किया। कथकली मंडपम् के ऑडिटोरियम में कथकली और मोहिनीअट्टम नृत्य विशद विश्लेषण के साथ निकट से देखा। तत्पश्चात हृदय के उद्गार कविता में ढल गए। )