मुक्तक

कुछ भी कहे ज़माना ये विश्वास हो गया
मौसम तुम्हारे आने से कुछ ख़ास हो गया
तुमने किये जो सोलहो सिंगार ऐ प्रिये
पतझड़ में लग रहा है कि मधुमास हो गया
प्रीतम श्रावस्तवी
कुछ भी कहे ज़माना ये विश्वास हो गया
मौसम तुम्हारे आने से कुछ ख़ास हो गया
तुमने किये जो सोलहो सिंगार ऐ प्रिये
पतझड़ में लग रहा है कि मधुमास हो गया
प्रीतम श्रावस्तवी