*पढ़ते हैं जो मन लगा, बन जाते विद्वान (कुंडलिया)*

पढ़ते हैं जो मन लगा, बन जाते विद्वान (कुंडलिया)
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पढ़ते हैं जो मन लगा, बन जाते विद्वान
शीश झुकाता जग उन्हें, देता है सम्मान
देता है सम्मान, सदा रहते वे आगे
पुस्तक जिनका शौक, न विद्यालय से भागे
कहते रवि कविराय, छात्र को शिक्षक गढ़ते
छूते हैं वह शीर्ष, रोज विद्या जो पढ़ते
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451