गुलिस्ता में जो भँवरा फूल संग चहकता है।

गुलिस्ता में जो भँवरा फूल संग चहकता है।
उड़ती तितली देख न जाने क्यों,दिल ही दिल जलता है।
खुद की दिल-कशी पर जोर-शोर से लुत्फ उठाता है।
फिर तितलियों की आज़ादी पर क्यों,इतना शोर मचाता है।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”