मुक्तक

रिश्तों का अब मोल न कोई, दौलत सब पर हावी है।
कोई इससे बच नहीं पाया, लिप्त यहाँ हर लाबी है।
भाईचारा संस्कार और, विनयशीलता को प्रीतम,
डूब गया है सब कुछ लेकर, दरिया ये गिर्दाबी है
——— प्रीतम श्रावस्तवी——–
रिश्तों का अब मोल न कोई, दौलत सब पर हावी है।
कोई इससे बच नहीं पाया, लिप्त यहाँ हर लाबी है।
भाईचारा संस्कार और, विनयशीलता को प्रीतम,
डूब गया है सब कुछ लेकर, दरिया ये गिर्दाबी है
——— प्रीतम श्रावस्तवी——–