बोझ तुम्हारी यादों का : हरवंश हृदय

झुकी झुकी सी पलकों पर है बोझ तुम्हारी यादों का
झूठी रह गई कसमों का … रह गए अधूरे वादों का
अब तो संभल गया हूं लेकिन जब था मैं गर्दिश में
क्या ही मान रखा तब तुमने मेरी बेबस फरियादों का
तुमने न सही पर मैंने तो दिल से चाहा था तुमको
कुछ तो मोल रखा होता तुमने मेरे जज्बातों का
न ही गिला, न कोई शिकायत, बस खुद से शर्मिंदा हूं
अफसोस कि मेरा प्रेम ग्रन्थ किस्सा बना फसादों का
– हरवंश हृदय
बांदा, उत्तर प्रदेश
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