*मांँ मैं तो इंसान बनूंँगा*

मांँ मैं तो इंसान बनूंँगा
इंसानियत को मानूंँगा मैं, मैं तो इंसान बन।
रक्षा करूंँगा देश की, सच्चा जांबाज बन।
मान रखूंँगा हर महिला का, माता बहन मानकर।
मैं तो कर्मों का केवल हिसाब रखूंँगा।
मांँ मैं तो पहले इंसान बनूंँगा।।१।।
निस्वार्थ सेवा और लालच का त्याग कर।
गरीब असहायों की रक्षा, कमजोरों का उद्धार कर।
देश हित में पराक्रम से, जग में ऊंँचा नाम कर।
कोई भूखा ना रहे देश में, मैं ऐसा किसान बनूंँगा।
मांँ मैं तो पहले इंसान बनूंँगा।।२।।
मात-पिता का सिर न झुके, बड़ों का सम्मान कर।
कर्तव्य पथ पर मैं चलूंँगा, पर्वतों को लाँधकर।
सत्य का साथ दूंँगा, झूठ को ना मानकर।
मैं बोलूंँगा बाद में, पहले हर शब्द की जांँच करुंँगा।
मांँ मैं तो पहले इंसान बनूँगा।।३।।
पैर टिके हों चाहे जमी पर, आसमान की बात कर।
पढ़ लिखकर बनूंँगा शिक्षित, शिक्षा पर संवाद कर।
मानव हूँ मानव को समझूँगा मैं तो, मानवता मानकर।
मैं दुष्यन्त कुमार हिन्दू ना, कभी मुसलमान बनूँगा।
मांँ मैं तो पहले इंसान बनूंँगा।।४।।