हुनर हर मोहब्बत के जिंदगी में सिखाएं तूने।
*स्वर्गीय श्री जय किशन चौरसिया : न थके न हारे*
कुंडलिया छंद: एक विवेचन ( अभिमत )
पुरुषों के पास मायका नहीं होता, ना कोई ऐसा आँगन, जहाँ वे निः
व्यक्ति को ख्वाब भी वैसे ही आते है जैसे उनके ख्यालात होते है
थोड़ा Success हो जाने दो यारों...!!
अब भी देश में ईमानदार हैं
दिल दिया है प्यार भी देंगे
- परिंदे कैद नही किए जाते -
विचारों का संगम, भावनाओं की धारा,
जन्मभूमि पर रामलला के मंदिर का निर्माण हो
तेरी सारी बलाएं मैं अपने सर लेंलूं
वो भी क्या दिन थे क्या रातें थीं।
एक ही ज़िंदगी में कई बार मरते हैं हम!
"निज भाषा का गौरव: हमारी मातृभाषा"
फीका त्योहार !
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"