नैसर्गिक जो भी रहे, कर्म दिये सम्मान।

नैसर्गिक जो भी रहे, कर्म दिये सम्मान।
अभिधा ने जिनको जना, वो कथ से बलवान।।
जैसे पृथ्वी को लखें,जो सबकी है मातु ।
सदा पालती जो हमें, भूखी रख निज आत।।
संजय निराला
नैसर्गिक जो भी रहे, कर्म दिये सम्मान।
अभिधा ने जिनको जना, वो कथ से बलवान।।
जैसे पृथ्वी को लखें,जो सबकी है मातु ।
सदा पालती जो हमें, भूखी रख निज आत।।
संजय निराला