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22 Mar 2025 · 2 min read

आशां नही है ये आजादी!

थे लडे लोग जो आजादी को,
हासिल भी की थी आजादी,
पर इतना भी सरल नहीं था ये,
कैसे मिली थी ये आजादी,
कितनों ने किया संघर्ष इसमें,
कितनो ने अपनी बली चढा दी,
लगाई जिन्होंने प्राणों की बाजी,
देख भी न पाए थे वो आजादी!
कितने जुल्मी शासक थे वे,
यह बात जब समझ में आई,
चल पडी लहर गांव शहर में,
तब जवां दिलों ने ली अंगड़ाई,
किन किन के नाम गिनाऊं इसमें,
जोखिम में जान जिन जिन की आई,
लाठी डंडे, जेल हवालात,
यह बात आम हो गई थी भाई,
कितने माताओं कि गोद हुई सुनि,
कितने बहनों ने सिंदूर गंवाई,
कितने बच्चे हो गये थे अनाथ,
जब पिता की अर्थि घर पर आई!
तब कही जाकर सत्ता डोली थी,
तब जाकर वह कुछ बोलि थी,
देख रही थी वह रणबांकुरों का जलवा,
जब चहुं दिशाओं से आवाज ये आई,
फिरंगी छोडो देश हमारा,
अब ना सहेंगे और रुसवाई!
जातपात को कर दरकिनार,
धर्म संप्रदाय कि तोड दीवार ,
उदघोष ये हर जुबां पर आई,
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,
हैं सब आपस में भाई भाई!
अपना जाना तय किया,
अंग्रेजों ने जब यह समझ लिया!
पर जाते जाते वह खेल कर गये,
बना हुआ था जो मेल अब तक,
उसमें वह भेद कर गये,
धर्म और संप्रदाय को आधार बना,
देश को दो भागों में बांट भेंट कर गये!
पच्चत्तर साल बित गये हैं,
जैसे कैसे हम यहां पहुँचे हैं,
पर एक नहीं नजर आए,
जातपात और धर्म संप्रदाय से,
अभी तक उभर नहीं पाए,
भय है कहीं फिर से न बंट जाएं,
जिति हुई बाजी फिर हार न जाएं,
भाषा विवाद फिर जन्म ले रहा है,
जातिधर्म में तो बंटे तो थे,
अब उत्तर दक्षिण में ना बंट जाएं,
परिसीमन का विवाद भी एक बिन्दु है,
शायद एक कारण यह भी है,
धर्मनिरपेक्षता तो अब गई गूजरी बात हो गई,
भारतीयता कि पहचान अब हिन्दू सम्मान की हो गई!
भारत की राष्ट्रीयता अब हिन्दू हो गई!

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