बसन्त ऋतु
शिशिर ऋतु की कड़कड़ाती ठंड अब जा रही है,
नव कलियों की लहराती झाल कुछ बात बता रही है ।
पहाड़ियों में खिल रही फ्योंली कुछ जता रही है ,
क्योंकि प्रकृति की प्यारी बसन्त ऋतु अब आ रही है।।
हरी – भरी डाली भी आज खिल खिला रही है,
नये – नये वस्त्रों को पाकर वह जगमगा रही है।
आह देखो कहीं चमेली की सुगंध भी आ रही है,
क्योंकि प्रकृति की प्यारी बसन्त ऋतु अब आ रही है।।
स्वर्ण के जैसे सरसों भी खेतों में लहरा रही है,
देखो तो कोई प्रियतमा भी मन्द मन्द मुस्कुरा रही है।
होली की मिलन की बात विचारे वह लज्जा रही है,
क्योंकि प्रकृति की प्यारी बसन्त ऋतु अब आ रही है।।
सुदूर पहाड़ी में इक मां भी मन को आश बंधा रही है,
होली पर बेटा घरआयेगा इस बात को वो जान रही है।
इक चिड़िया भी डाली में फुदक फुदक कर नाच रही है,
क्योंकि प्रकृति की प्यारी बसन्त ऋतु अब आ रही है।।
एक बेटी के मन में भी खुशहाली आज जा रही है,
दूर पहाड़ी पर अपने मायके वो अब जा रही है।
प्यारी भंवरी भी कलियों पर झूलेगी यह गुनगुना रहीहै।
क्योंकि प्रकृति की प्यारी बसन्त ऋतु अब आ रही है।।