रेखाचित्र पर पूर्णिमा ( शीर्षक )
{ १ }
अधमरे लाशों पर बैठा कई सारे
हत्याएँ
जिसके पेट पर कब्रिस्तान खोदना!
तुम समझते हो कि मेरा अन्तिम संस्कार है।
{ २ }
पुस्तकालय में सबसे नीचे तख्त पर रखी हुई
मेरी किताब के अंतिम पन्नों के हाशिये पर
मेरा किया हुआ अंतिम हस्ताक्षर
मेरा नाम होगा
जो प्रमाणित करता मेरा होना
मेरा वजूद, मेरा परिचय, सबकुछ तुम्हें
सहस्त्राब्दियों के अतीतगर्भ में
दबी हुई सभ्यताओं के शिलालेख पर मिलेंगे
‘ आ ‘ वर्ण की आकृतियों का होना
जैसे मिट्टी के चूल्हे के आँच पर रखी हुई
गर्म तवा पर मेरी माँ को रोटियाँ सेंकना
जिसे सींचने मात्र से सृष्टि बचाना नहीं अपितु
आदमी होना है।
{ ३ }
इस पृथ्वी के गर्भगृह में द्वीप पर बैठा खगोलीय चंद्रमाएँ
जिस पर लिखी जा रही है कविताएँ
रेगिस्तान के ऊपर प्रेम की कविताएँ
तुम हो, तुम्हारे होने मात्र से
पूरी हो सकेंगी मेरी कविताएँ ?
तुम्हारे हाथों पर बनी हुई रेखाचित्र पर
तुम्हारे देह के भूगोल पर असंख्य आकृतियों का होना
दोनों का प्रतिबिंब बनना
मेरे हाथों के रेखाचित्र पर पूर्णिमा होना है।
अमावस्या के काली चन्द्रमाओं पर लिखी हुई कविताएँ
मेरा लाश होना है।
वरुण सिंह गौतम