दो नाव में रहे : हरवंश हृदय

जरूरत पड़ी तो धूप नहीं तो छांव में रहे
बेगैरत हैं वो लोग जो दो नाव में रहे
हमने तो सौंप दी दिल की सल्तनत उन्हें
अफसोस कि वो फिर भी चुनाव में रहे
संबंधों की बुनियाद स्वार्थ पर रखकर
शहरों की तरह वो हमारे गांव में रहे
दोस्ती इस जहां में नेमत है खुदा की
वो दोस्त ही क्या जो दबाव में रहे
बेहतर है कि उसे निकाल कर फेंकिए
जो कांटे की तरह चुभे और पांव में रहे
क्या ही मजा है बोलो ऐसी बिसात पर
पांसे भी हमने फेंके हमीं दांव में रहे
– हरवंश हृदय
बांदा