इश्क की आड़ में छलावा,एक निर्दोष पति की दर्दनाक दास्तान : अभिलेश श्रीभारती

साथियों, कई दिनों के बाद😭
आज मैं जो लिख रहा हूं इसे लिखने के लिए ना तो मैं तैयार हूं ना ही मेरा हाथ इस क्रूर भरी दर्दनाक दास्तान को लिखने के लिए कलम रूपी बोझ को उठाने में सक्षम नहीं हो पा रहा है। इसे लिखते हुए बार-बार मेरे हाथों से कलम छूटकर नीचे गिर जा रही है।
मेरा कलम बार-बार मुझसे चिल्ला चिल्ला कर कह रहा है कि अब बस करो मैं इस दास्तान को और आगे नहीं लिख सकती।
लेकिन मैं कलम के इन चीखों को अनसुना करते हुए उसे बार-बार कागजों पर घसीट रहा हूं।
कलम की इस दर्द को मैं महसूस भी कर पा रहा हूं और देख भी रहा हूं लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता उनकी तरह जो मासूमियत की भेंट चढ़ गए: अभिलेश श्रीभारती (लेखक)
😭😭😭
सबसे पहले मैं आपको घटना की भूमिका से अवगत कराता हूं
मेरठ के ब्रह्मपुरी इलाके में हाल ही में सामने आया सौरभ कुमार राजपूत हत्याकांड न केवल एक अपराध की कहानी है, बल्कि यह समाज में बढ़ते नैतिक पतन और रिश्तों की बदलती परिभाषा का एक भयावह उदाहरण भी है। यह घटना उन तमाम सवालों को जन्म देती है जो प्यार, विश्वास और स्त्री स्वतंत्रता की आड़ में होने वाले छल को उजागर करते हैं।
😭प्रेम, विवाह और विश्वासघात😭
सौरभ कुमार राजपूत, जो मर्चेंट नेवी में अधिकारी थे, अपने परिवार के खिलाफ जाकर मुस्कान रस्तोगी से प्रेम विवाह करते हैं। लेकिन उन्हें क्या पता था कि जिस स्त्री के साथ उन्होंने अपना जीवन बिताने का वचन लिया था, वही उनकी जान की दुश्मन बन जाएगी। यह एक ऐसी प्रेम कहानी थी, जो अंततः एक निर्दोष पति की निर्मम हत्या पर आकर खत्म हो गई।
सौरभ के लिए मुस्कान का प्यार सच्चा था, लेकिन मुस्कान के लिए शायद यह केवल एक सुविधा थी—एक ऐसा रिश्ता, जिसमें सुरक्षा तो थी, लेकिन प्रतिबद्धता नहीं। जब सौरभ अपने कर्तव्यों के कारण लंदन में थे, तब मुस्कान ने अपने प्रेमी साहिल के साथ एक नया जीवन बुन लिया। यह उस स्वतंत्रता की हकीकत को दर्शाता है, जो कभी-कभी अपने मूल अर्थ से भटककर स्वार्थ और अनैतिकता की चपेट में आ जाती है।
😭विश्वासघात की इंतेहा😭
4 मार्च की रात, जब सौरभ गहरी नींद में थे, उनकी पत्नी मुस्कान ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर उनकी हत्या कर दी। नशे की दवा देकर सुलाने के बाद उसने खुद चाकू से वार किया। इतना ही नहीं, शव के 15 टुकड़े कर उन्हें प्लास्टिक के ड्रम में डालकर सीमेंट भर दिया ताकि कोई सुबूत न बचे। हत्या के बाद वह बेखौफ शिमला-मनाली घूमने चली गई, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
यह घटना केवल एक पत्नी द्वारा अपने पति के साथ किया गया छल नहीं है, बल्कि यह इस बात का भी प्रतीक है कि प्रेम के नाम पर स्वतंत्रता और अधिकारों की आड़ में किस तरह नैतिकता की सारी सीमाएं तोड़ी जा रही हैं। मुस्कान को शायद यही लगा होगा कि एक पति के रहते हुए प्रेमी के साथ जीवन बिताना उसके अधिकार का हिस्सा है। परंतु यह स्वतंत्रता का गलत अर्थ निकालने का खतरनाक परिणाम था।
अब इस दास्तान को लिखते हुए मेरा हाथ मुझसे पूछ रहा है की बता???
तेरा समाज किस दिशा में जा रहा है?
और मेरे पास इनके प्रश्नों के लिए कोई जवाब नहीं 😭😭😭
इस हत्याकांड से दो बड़े सवाल खड़े होते हैं—क्या स्त्री की स्वतंत्रता का मतलब यह है कि वह अपने स्वार्थ के लिए हत्या तक कर सकती है? और क्या रिश्तों में प्रेम और वफादारी अब सिर्फ शब्द भर रह गए हैं?
आज के समाज में प्रेम का मतलब केवल एक-दूसरे के साथ रहना भर नहीं रह गया है, बल्कि इसमें स्वार्थ, सुविधा और अवसरवादिता भी घुल चुकी है। जब तक प्रेम सुविधाजनक रहता है, तब तक उसे निभाया जाता है, लेकिन जैसे ही कोई कठिनाई आती है, लोग उससे बाहर निकलने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं।
मुस्कान जैसी महिलाएं उन तमाम महिलाओं की छवि को धूमिल कर देती हैं जो वास्तव में प्रेम, त्याग और निष्ठा में विश्वास रखती हैं। जब समाज में ऐसे उदाहरण सामने आते हैं, तो स्त्री की स्वतंत्रता को लेकर सवाल उठने लगते हैं। क्या स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि नैतिकता और रिश्तों की सभी सीमाओं को तोड़ दिया जाए? क्या यह एक ऐसा समाज है, जहां विवाह केवल एक समझौता बनकर रह गया है?
😭न्याय और समाज की जिम्मेदारी😭
इस तरह की घटनाओं के पीछे केवल अपराध नहीं, बल्कि समाज की वह मानसिकता भी है, जो प्रेम और रिश्तों को महज एक विकल्प मानने लगी है। जब तक हम रिश्तों में सम्मान और नैतिकता को प्राथमिकता नहीं देंगे, तब तक ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति होती रहेगी।
सौरभ की हत्या केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं है, यह विश्वास और रिश्तों की हत्या है। यह हमारे समाज के लिए एक चेतावनी है कि प्रेम के नाम पर छलावा और अपराध को बढ़ावा देने वाली मानसिकता को नष्ट किया जाए। सच्चे प्रेम का अर्थ केवल अधिकार नहीं, बल्कि जिम्मेदारी और वफादारी भी है—जिसे भूलना हमें और भी गहरे अंधकार की ओर धकेल सकता है।
माफ कीजिए मैं और आगे इस दर्द भरी दास्तां को नहीं लिख सकता क्योंकि इसके आगे लिखने के लिए ना तो मैं तैयार हूं और ना मेरी कलमें।
मेरे साथ मेरी कलम भी इस दस्तान को लिखते लिखते अब थक चुकी है😭😭😭
और आगे क्या कहूं मैं कुछ नहीं कह सकता आप ही कहिए। मेरे द्वारा मेरे कलम को जो भी कहना था हमने आपके सामने प्रस्तुत किया।
😭😭😭
✍️लेखक✍️
अभिलेश श्रीभारती
सामाजिक शोधकर्ता, विश्लेषक, लेखक