अच्छे कर्मों का फल (लघुकथा)
करते रहो सुकर्म को सोचो न फल कभी
मूँछ पर दोहे (मूँछ-मुच्छड़ पुराण दोहावली )
पहले जब तु पास् होती थी , तब दिल तुझे खोने से रोता था।
अपने सफऱ में खुद की कमियाँ छांटता हूँ मैं ,
एक शायर खुद रहता है खंडहरों में - पता महलों का बताता है
काली शर्ट पहनकर तुम आते क्यों हो?
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गणपति वंदना
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
नया वर्ष पुराना वर्ष-नववर्ष
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
चाकरी (मैथिली हाइकु)
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
बहुत अंदर तक जला देती हैं वो शिकायतें,
*********मैं धारा टकराती**********
बनाओ न बहाने, बहाने बनाने से क्या मिलेगा ?
जरूरत के वक्त जब अपने के वक्त और अपने की जरूरत हो उस वक्त वो