यही जिंदगी है।

बिखरकर सिमटना यही ज़िंदगी है,
निखरकर सँवरना यही ज़िंदगी है।
जो देखा ज़माना ख़्याल ऐसा आया,
सितम तेरा सहना यही ज़िंदगी है।
सीने में हरपल किसी दिल के तरह,
मुसलसल धड़कना यही ज़िंदगी है।
छुपा ले मुझे अपनी आग़ोश में तू,
कि तुझमें सिमटना यही ज़िंदगी है।
निगाह-ए-करम तेरा ऐ मेरे मालिक,
गुल सा महकना यही ज़िंदगी है।
कि सांसों से सांसों की डोरी बंधी है,
तुझे पा गुजरना यही ज़िंदगी है।
कि है संगमरमर सा एहसास तेरा,
दिल में उतरना यही ज़िंदगी है।
बहुत थक गई हूँ सफ़र करते-करते
लो चाहूँ ठहरना यही ज़िंदगी है।
लिख दे ऐ ‘डिम्पल’ दिलकश ग़ज़ल,
कागज़ पर बिखरना यही ज़िंदगी है।
जला दे मुझे एक शम्मा की सूरत
सरापा पिघलना यही जिंदगी है।
कवयित्री: शालिनी राय ‘डिम्पल’✍️
आजमगढ़, उत्तर प्रदेश।
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