जीवन की नैया डोल रही

जीवन की नैया डोल रही।।
धूप-छांव हैं खेल सदृश,
मत घोलो जीवन में विष,
ये सांसें ही अनमोल रही।
जीवन की नैया डोल रही।1।।
समय भागता है प्रतिक्षण,
अंतर्द्वंद्व सदृश यह रण
मैं मन को सदा टटोल रही।
जीवन की नैया डोल रही।।2।।
मलय पवन की मंद बयार,
छेड़े जीवन के मधुर तार,
मन के पट सारे खोल रही।
जीवन की नैया डोल रही।।3।।
बांसुरी कन्हैया की बनकर,
सरस प्रेममय धुन बजकर,
मैं शहद विश्व में घोल रही।
जीवन की नैया डोल रही।।4।।
कुछ लोग बड़े हैं ख़ास यहाँ,
केवल पढ़ते इतिहास यहाँ,
मैं पढ़ती सदा भूगोल रही।
जीवन की नैया डोल रही।।5।।
@स्वरचित व मौलिक
कवयित्री शालिनी राय ‘डिम्पल’
आजमगढ़, उत्तर प्रदेश।
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