“खुशिओं का चमन “

डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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ना बांधों
बेड़ियों में अब
मुझे उड़ना
गगन में है
सितारों से
मिलन होगा
मुझे रहना चमन में है
नहीं तुम
टोकना मुझको
नहीं प्रतिबंध
तुम करना
जहाँ तक
हो मेरी बातें
उसे लोगों को तुम कहना
मैं अपनी
बात लोगों को
कहूँगा
प्यार से मिलकर
करो तुम
शांति की पूजा
भला होता नहीं लड़कर
सभी तो
एक मानव हैं
नहीं कुछ
भिन्यता अपनी
लड़ाई क्यों
करें हम तो
बनाएँ मित्रता अपनी
यही पैगाम
लोगों को
सुनना
और बताना है
रहें हम
प्यार से मिलकर
चमन खुशिओं का लाना है
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डॉ लक्ष्मण झा परिमल