भीड़ तन्त्र

लेखक – डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त –
स्थान – दिल्ली –
विषय – दिन 1:- भीड़
विधा – स्वछंद काव्य – पद्य
शीर्षक – अनुगामी
भीड़ तंत्र का मत हो जाना तुम अनुगामी।
अपनी राह स्वयं से चुनना तुम विरले हो,
हे अपने मन, अपने जीवन के स्वामी।
राह कठिन है , होनी ही है , पथ ये आसान नहीं होता।
लेकिन तुम मत थक जाना , कर्म किये से मंजिल पाना।
बाधाओं का करना सामना , आपदाओं से न होगा हारना।
जीत मिलेगी , चलते जाना।
लेकिन भीड़ तंत्र का मत हो जाना तुम अनुगामी।
अपनी राह स्वयं से चुनना, तुम विरले हो,
हे अपने मन, अपने जीवन के स्वामी।
दर्द मिले या मिले असफलता , कष्ट मिले या मिले विफलता।
ताने भी मिल सकते हैं , अपने और परायों के ,
बुरे वचन सहने पड़ सकते हैं।
इन बातों का – बातों से , तुम विचलित मत हो जाना।
भीड़ तंत्र के अनुगामी तुम मत हो जाना ।
अपनी राह स्वयं से चुनना , तुम विरले हो,
हे अपने मन, अपने जीवन के स्वामी।
अन्त तुम्ही को जीत मिलेगी , चलते जाना, बस चलते जाना ।
राग द्वेष , और कपट मिलेगा , भूख प्यास से तन , मन झुलसेगा।
कहीं – कहीं तो अनायास ही , विपदाएं तुमको घेरेंगी।
कर्कश , कंटक वैचारिक , परिवेश मिलेंगे।
अपने पराये ताने देंगे , व्यंग वाण से चोटिल करेंगे।
इन सबका सज्ञान न लेना , तुमको होगा चलते जाना।
जीत मिलेगी , चलते जाना।
लेकिन भीड़ तंत्र के अनुगामी तुम मत हो जाना ।
अपनी राह स्वयं से चुनना, तुम विरले हो,
हे अपने मन, अपने जीवन के स्वामी।
जो कोई चलता अपने रास्ते , दुःख निश्चित ही उसको मिलते।
शुरू – शुरू में चिंता होती , फिर शनै – शनै है सहमति बनती।
मन से मन को ढाढस देना , ईश को अपने याद रखना , डर मत जाना।
स्थिति बदलते देर न लगती , कर्म किये से जीत है मिलती।
सहस का यदि साथ न छोड़ें , बस थोड़ा ये विष हम पी लें।
शिव शंकर भोले बन जाना ,
जीत मिलेगी , चलते जाना।
लेकिन भीड़ तंत्र के बन कर अनुगामी ,
बीच राह में अटक मत जाना ।
अपनी राह स्वयं से चुनना, देखा देखी भटक न जाना।
तुम विरले हो, एक अकेले , अपने मन,
अपने जीवन के स्वामी।