डर के आगे जीत है!
बार बार यह सुनता रहा
डर के आगे जीत है,
दिल फिर भी डरता रहा,
लगा यह सब झूठ है,
मिथ्या है असत्य है,
फिर कई बार हिम्मत जुटाई,
पर यह काम ना आई,
बात है यह जबकि,
महामारी थि कोरोना कि!
घर पर बैठे ऊब गये था,
सह धर्मिणि संग टहलने चला,
रह रहे थे बहु बेटे के साथ,
लौक डाउन कि है बात!
दसवें माले पर रह रहे थे,
लिफ्ट से निचे को चले थे,
कि अचानक बिजली गूल हो गई,
एक झटका लगा और लिफ्ट रुक गई!
छा गया अंधेरा,
सोचा शीघ्र छटेगा घनेरा,
किन्तु ऐसा न हुआ,
सोचा ऐसा क्यों हो रहा,
एक दो मिनट नही,
चार पांच मिनट बित गये,
फोन लगाया तो लगा नहीं,
अंधेरा छंटा नहीं,
दम घुटने लगा!
बदहवासी से हाल बेहाल,
दिखने लगा महाकाल,
अब तो मरना तय है,
जिंदगी जाने का भय है,
दोनों ने एक दूसरे को कोशा,
फिर दिलाया स्वयं हि भरोसा!
तभी अचानक हलचल हुई,
और लिफ्ट चल पडि,
जा रहे थे हम ग्राउंड फ्लोर,
पहुंच गये अंतिम छोर,
बाईसवीं मंजिल पर रुक गई,
हमने कुछ देर प्रतिक्षा करि,
लेकिन वह नहीं चलि!
हम बाहर निकल हि रहे थे,
कि वह चल पडि,
अब मैं बाहर और वह अंदर,
मैने बटन भी दबाया,
पर काम ना आया!
मै भागते हुए सीडियां उतर रहा था,
बदहवासी में दौड रहा था,
तभी नजर पडि,
वह वहीं थि खडी,
जहां से हमने उसमें कदम रखा था!
यानी जहां से चले थे,
अब वहीं पर खड़े थे,
एक दूसरे ने ,
एक दूसरे को,
इतमीनान से देखा,
चिंताओं के मध्य,
मुस्कान से परखा!
अब हौले हौले,
सहमे सहमे,
सीढियों से उतरने लगे,
ना कुछ कह पाए,
ना कुछ कहने की हिम्मत जुटाए,
निचे उतर आए,
घुमते रहे कालौनी में इधर उधर,
डर बैठ गया मन के अंदर!
कुछ अंतराल बाद हम गांव चले गये,
और अब जब लौट कर आए ,
तो,
साहस ना जुटा पाए ,
सीढियों से ही आते जाते ,
एक दिन अनायास,
हुआ आभास,
एक बार कोशिश तो करना चाहिए,
इस तरह कब तक डरना चाहिए!
फिर लोगों को सामान्य रूप से देखा,
ना कोई शिकन,
ना कोई उलझन,
बे हिचक आवागमन,
जांचा परखा,
और डरते मरते,
लिफ्ट में कदम रखा,
बटन दबाया,
जहां जाना था,
उसने वहां पहुंचाया,
कोई अडचन नही,
कई बिघ्न बाधा नहीं,
सब कुछ सामान्य रहा,
फिर लौटने पर भी,
वही किया!
अब धिरे धिरे हौसला आ रहा था,
दिल दिमाग में बैठा डर जा रहा था,
तो सोचने लगा ,
जिस किसी ने भि कहा है,
तो ठीक हि तो कहा है,
डर के आगे जीत है,
यह उक्ति हौसले का प्रतीक है!
डर के आगे जीत है!!