प्रेयसी के उभरे हुये उरोज बस बंजर पहाड़ समान हैं

प्रेयसी के उभरे हुये उरोज बस बंजर पहाड़ समान हैं
यदि लगाव न हो।
निज उच्छृंखल कामुकता को भोगने को तत्पर रहे
यदि कोई ठहराव न हो।।
प्रेयसी के उभरे हुये उरोज बस बंजर पहाड़ समान हैं
यदि लगाव न हो।
निज उच्छृंखल कामुकता को भोगने को तत्पर रहे
यदि कोई ठहराव न हो।।