कहे निराला ज्ञान
भोर कहे अनुपम गहे, आओ कर लो सैर।
छटा सुहानी जा रही, उससे कैसा बैर।।
रजनी जगती रातभर, दिनकर को कर याद।
वाद मिटे बदले समय, बन जाये अब साद।।
हो प्रभास दिनकर मिले, पाये जगत सुवास।
जीत हार में क्यों जहाँ, खो बैठे आवास।।
हो प्रवास उधार लिए, रखना इसका ध्यान।
दंभ उचित फिर क्यों जहाँ, कहे निराला ज्ञान।।
संजय निराला