सब्र
टूट रहा अब सब्र का बांध हमारा !
मुंह में लगी लगाम अब खोल दो !!
मचल रहा व्याकुल सागर सा मन !
राष्ट्र सेवा का कुछ तो तुम मोल दो !!
पनप रहे आस्तीन में जहरीले शत्रु !
समय है बस नसबंदी करने बोल दो !!
धरे रह जाएंगे नापाक इरादे उनके !
बस अपनी सेना के हाथ खोल दो !!
• विशाल शुक्ल