मुकरीः हिन्दी साहित्य की रोचक काव्य विधा
हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं में मुकरी एक अनूठी शैली है, जो अपनी संक्षिप्तता, चतुराई और मनोरंजक प्रकृति के कारण लोकप्रिय रही है। यह काव्य-शैली मुख्य रूप से चार पंक्तियों में सजी होती है। पहली तीन पंक्तियाँ किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थिति का वर्णन करती हैं, और चैथी पंक्ति में उस वर्णित वस्तु का नाम बताकर रहस्योद्घाटन किया जाता है।
मुकरी का प्रारंभिक स्वरूप हिन्दी-फारसी काव्य परंपरा से जुड़ा हुआ माना जाता है। इस विधा का श्रेय हजरत अमीर ख़ुसरो (1253-1325) को दिया जाता है, जो एक महान सूफी संत, कवि, और संगीतकार थे। अमीर ख़ुसरो ने हिन्दी और फारसी भाषा के समन्वय से कई नई काव्य शैलियों को जन्म दिया। उनमें रक्तक, पहेली, दो-सुखन और मुकरी जैसी विधाएँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
अमीर ख़ुसरो की मुकरी शैली की विशेषता यह थी कि वह हास्य और व्यंग्य के माध्यम से गहरे अर्थ व्यक्त करने की क्षमता रखती थी। उनकी लिखी पहेलियाँ और मुकरी न केवल मनोरंजन का साधन थीं, बल्कि समाज की विभिन्न परिस्थितियों और सांस्कृतिक परिवेश को भी दर्शाती थीं।
मुकरी की खासियत यह है कि यह पाठक या श्रोता को सोचने पर मजबूर करती है और अंत में एक हल्का-फुल्का आनंद देती है। यही कारण है कि यह विधा आज भी साहित्य प्रेमियों के बीच लोकप्रिय है। हिन्दी कवि सम्मेलनों, विद्यालयों की साहित्यिक प्रतियोगिताओं और हास्य मंचों पर मुकरी को विशेष स्थान प्राप्त है। अमीर ख़ुसरो के समय से लेकर आज तक, यह विधा अपनी रोचकता बनाए हुए है। वर्तमान समय में सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल मंचों पर भी मुकरी का उपयोग मजाकिया और व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति के लिए किया जाता है। मुकरी हिन्दी की एक प्रसिद्ध काव्य विधा है, जिसकी पहचान इसकी चार पंक्तियों की रचना शैली और आखिरी पंक्ति में छिपे हुए उत्तर के अनावरण से होती है। यह हास्य, व्यंग्य, बौद्धिक खेल का समन्वय और सुंदर उदाहरण है।
मुकरी का संरचनात्मक विधानः मुकरी को चार पंक्तियों की संरचना में लिखा जाता है। पहली तीन पंक्तियाँ रहस्यात्मक होती हैं। इनमें किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थिति का विवरण दिया जाता है, लेकिन नाम स्पष्ट नहीं किया जाता। चौथी पंक्ति में उत्तर या समाधान होता है। अंत में उससे भिन्न वस्तु का नाम बताया जाता है, जो पाठक या श्रोता सोच रहा होता है, तुकांत बिल्कुल पाठक की सोच से मिलता जुलता होता है। सरल भाषा और चुटीला अंदाज होता है। मुकरी आमतौर पर लोकभाषा में लिखी जाती है, जिससे यह सहज और मनोरंजक बनती है।
निष्कर्ष रूप से कहा जाए तो मुकरी केवल एक मनोरंजक काव्य शैली ही नहीं, बल्कि हिन्दी साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा भी है, जो हजरत अमीर ख़ुसरो के रचनात्मक योगदान का प्रमाण है। इसकी संक्षिप्तता, चतुराई और सहजता इसे विशेष बनाती है। यह विधा यह भी दर्शाती है कि किस प्रकार शब्दों के चतुर प्रयोग से गहरे भावों को कम शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है। आज भी यह शैली अपनी मौलिकता और आकर्षण बनाए हुए है, और इसका प्रयोग साहित्य में उत्सुकता व आनंद का स्रोत बना हुआ है।
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मात्रा विधान:
1.कुल चार पंक्तियाँ होती हैं।
2.प्रत्येक पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं।
3.पहली दो पंक्तियाँ भूमिका बनाती हैं।
4.तीसरी पंक्ति में दूसरी सखी, पहली सखी के प्रश्न का अनुमानित उत्तर देती है।
4- चौथी पंक्ति में पहली सखी के रहस्मयी प्रश्न का रहस्योद्घाटन होता है।
5.पहली दो पंक्तियों में एक तुकांत (काफिया) का पालन किया जाता है। तीसरी और चौथी पंक्ति में एक तुकांत होता है।
6.भाषा सरल, सुगम और जनसामान्य की समझ में आने वाली होनी चाहिए।
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मुकरी के कुछ उदाहरणः
उसने अंग अंग महकाया
उससे ही खिल जाती काया
रखे सफाई के लाखों गुन
ऐ सखि साजन, नहिं सखि साबुन
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बातों से सदा करता वार
हार कर भी नहिं माने हार
करता है वह अक्सर अपील
ऐ सखि साजन, नहिं वकील
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गिरने पर है मुझे उठाया
स्वस्थ करे वह मेरी काया
पीड़ा मेरी सदा मिटाई
ऐ सखि साजन, नहीं दवाई
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व्याकुल मन को खूब सुहाता
अधरों से मेरे लग जाता
बुझाता है वह मेरी प्यास
ऐ सखि साजन, नहिं सखि गिलास
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समय का पालन यह सिखाए
रोज सवेरे मुझे जगाए
हरदम उसकी जरूरत पड़ी
ऐ सखि साजन, नहीं सखि घड़ी
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बाहर उजला भीतर रीठा
लगता है वह कितना मीठा
काम सभी बातों से लेता
ऐ सखि साजन, नहिं सखि नेता
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सच्चाई का पाठ पढ़ाया
अंधकार को दूर भगाया
उसके दम से ऊंचा मस्तक
ऐ सखि साजन, नहिं सखि शिक्षक
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सबकी नजर में बसी है रंगत
सिर चढ़कर बोले उसकी लत
खुले आंख तो याद वह आय
ऐ सखि साजन, नहीं सखि चाय
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उर पर रखती असीमित भार
पूरा न हो उसका उपकार
जनम जनम का उससे नाता
ऐ सखि साजन, नहीं सखि माता
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@अरशद रसूल