‘क्या फ़र्क पड़ता है’

‘क्या फ़र्क पड़ता है’
जो ना है रंग गोरा हां नाक भी है थोड़ी दबी नहीं सुंदर हैं होंठ गुलाब की पंखुड़ी से और हाँ आंखें भी तो हैं छोटी हर कोई देख कर, देता है टोक और तो और कद भी है नाटा और नहीं है चलने का सालीका भी, आवाज़ भी कोई ख़ास अच्छी नहीं है, नहीं होते हैं लोग देख कर आकर्षित…,क्या फर्क पड़ता मेरे रूप से मेरे रंग से मेरी आवाज से मेरे बालों से मेरी आंखों से मेरे होठों से और मेरे चलने से….क्या फर्क पड़ता है मुझे।
पर कुछ गुण तो है, जो करते हैं मुझको पूर्ण मैं हूं उस विधाता की संरचना जिन्होंने मुझे संसार में उतारा, मुझ दिया एक कोमल हृदय जो किसी के भी दर्द को देख सिरह उठता है, और है एक ठहराव जो दिलाता है पहचान मेरे अपने होने की, मुझ में है एक भोलापन एक सच्चाई और दूसरों को सुनने और समझने की शक्ति….। आप कैसे हैं यह मायने नहीं रखता, आपका व्यक्तित्व कैसा है आपका हृदय कैसा है आपकी भावनाएं कैसी हैं आपकी सोच कैसी है यह बहुत मायने रखता है। इसलिए आप जैसे भी उस परम शक्ति की संरचना है, उसका शुक्रिया कीजिए उसका आभार व्यक्त कीजिए और किसी की बातों में आ कर अपने आप को दुख न पहुंचाइये।
मधु गुप्ता “अपराजिता”