नींद बन गई है प्रीतम और मैं उसकी विरह की मारी।

नींद बन गई है प्रीतम और मैं उसकी विरह की मारी।
बिना शिकवा शिकायत के हो गई ‘उड़न छू’ हमसे हमारी।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”
नींद बन गई है प्रीतम और मैं उसकी विरह की मारी।
बिना शिकवा शिकायत के हो गई ‘उड़न छू’ हमसे हमारी।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”