रघुकुल वाली रीत (दोहा छंद)

राम नाम रटते हुए, जीवन जाए बीत।
शक्ति दो हम निभा सकें, रघुकुल वाली रीत।।
घर में सबसे प्यार हो,कभी न हो तकरार।
मिलजुल कर सबसे रहे,अपना यह परिवार।।
भरत शत्रुघन की तरह,मिल जाएं यदि भ्रात।
जीवन में होगी नहीं, कोई काली रात।।
कैकेई की भाँति यदि,मिल जाए वरदान।
आप बनाना पूत को, बिल्कुल राम समान।।
पित आज्ञा का जो मनुज,करता है सम्मान।
जीवन में होता सफल,बनता वही महान।।
नहीं मंथरा की तरह,चलना कोई चाल।
अंत समय होगा बुरा , रहेगी न तन खाल।।
भक्त विभीषण की तरह,भजो रात दिन राम।
कर्म बुरे सब छोड़ दो,कर लो सुन्दर काम।।
जाना होगा एक दिन,इस दुनिया को छोड़।
भव सागर तरना अगर,हरि से नाता जोड़।।
मिलता सच्चा ज्ञान है,आकर प्रभु के द्वार।
भक्ति भाव हरि जो भजे, होता बेड़ा पार।।
मन में है यह कामना,मिले भक्ति प्रभु राम।
राम नाम रटता रहूँ, दिन भर आठों याम।।
राम नाम पर वार दूं, मैं तो नोट हजार।
राम नाम प्रिय है हमें, राम सकल आधार।।
स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)