वक्त गुजरें ऐसे…..

वक्त गुजरें ऐसे…..
जैसे पहिए की चाल हो।
पहुंचे मक़ाम तक बिना मुज़ाहमत के,
तो फिर खुद से ही बेस़क सवाल हो।
किसी की चंद ख़्वाहिशों में ही मुक्कमल ज़हान है,
तो किसी को मरने तक भी न मुक्कमल ज़हान हो।
रास्ते जब सब एक से लगते हैं..X2
तब उलझनों के जाल में क्या ही हाल हो।
न शह का खेल हो न मात का डर हो,
काश जिंदगी तेरे ऐसे ढंग में हम आबाद हो।