हर दिन नया कुरुक्षेत्र…
हर दिन नया कुरुक्षेत्र…
अल्हड़ आनंद पार कर
बिटिया सयानी आई अनुभव द्वार,
संबंधों के कुरुक्षेत्र में लगा न पाई सौभद्र सा पार,
सारा गर्भित ज्ञान भी शून्य हुआ हाय!हार गई मानवता आज
हर क्षण लाक्षागृह सा सुंदर तप्त था….. हर दिन था अज्ञातवास
लाख रटाया मां ने पर ,
बताया न कोई रहस्य,
शकुनि के पासों का कोई नहीं है तोड़?
आई ना मुझे दुनियादारी
सारी कलाकारी धरी रह गई
ओझेपन की चौसर में
दांव लग गई हर समझदारी
चाटुकारी करती नहीं,
आती भी नहीं थी होशियारी,
बस निभाती रही वो सदा बस वफादारी,
सुब गद्दारी आँचल संभाल कर ,भीगे आंखों से हंसकर
,बस मुस्कुराती रही सदा सुकुमारी गृहणी नवेली हमारी
(सौभद्र-अर्जुन का पुत्र )
पं अंजू पांडेय अश्रु