“आता जाता मौसम”

रात रागिनी करे तमाशा, आधा
आधा तमाशा है हर जीवन का सांचा
सांचा हृदय कभी ना किसी को छलाता
छलाता छलावा कर दे रिश्तों को आधा
आधापन प्रेम में डाले अनेकों बाधा
बाधा प्रेम में जहर का हाला बन जाता
जाता ना पिया हाला प्रेम का आधा
आधा पका प्रेम में वो कुंदन रूप ना रिझाता
रिझाता मौसम बसंत का प्यार बरसाता
बरसाता प्रेम नैनों में अंसुअन धार ले आता
आता जाता मौसम टूटे दिलों को बांधता
बांधता डोर प्रीत की जब प्रेम दिलों से जुड़ता
जुड़ता संबंध कभी ना कभी तो टूटता
टूटता सितारा जैसे आसमान में बिखरता
बिखरता दर्द कभी आवाज ना करता
करता तो बस अंदर ही अंदर रुंदन करता।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”
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