सांस्कृतिक समन्वय की मिसाल : चौरेल

तीन हजार पाँच सौ सत्ताइस वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले बालोद जिला के अन्तर्गत गुण्डरदेही प्रखण्ड में स्थित चौरेल ग्राम सांस्कृतिक एकता की एक बेहतरीन मिसाल है। भौगोलिक दृष्टि से यह तीन गाँवों और तीन धाराओं की संगम स्थली है। यहाँ पर तांदुला नदी में लोहारा नाला और जुझारा नदी का संगम स्थल और आसपास फैली हरियाली एक मनोहारी दृश्य उपस्थित करता है। यह तीन गाँवों चौरेल, मोहलाई और पैरी का भी सन्धि स्थल है।
यह अनेक पंथों, सम्प्रदायों और जातियों का धार्मिक स्थल है। सतनामी, कबीरपंथी, निषाद, गोड़, गाड़ा समाज के धार्मिक आस्थाओं का प्रमुख केन्द्र है। उनके अलग-अलग गुरुद्वारे, मन्दिर और सामुदायिक स्थल है। यहाँ का गौरैया मन्दिर भी प्रसिद्ध है, जो जनआस्था और विश्वास का प्रतीक है।
चौरेल में माघी पूर्णिमा को विशाल मेला लगता है। मेला हेतु गुरु घासीदास मन्दिर के बगल में बड़ा सा खुला मैदान तथा तांदुला नदी का तटवर्ती भाग में विभिन्न प्रकार की दुकानें कतारबद्ध सजती हैं। तांदुला का यह तट पूर्व में मुक्तिधाम रहा है।, लेकिन अब उसे दूर में शिफ्ट कर दिया गया है। मेला के दौरान सभी समाजों के लोग पूजा-अर्चना कर अपनी सामाजिक गतिविधियाँ शान्ति, हर्ष और सौहार्द्रपूर्ण ढंग से सम्पन्न करते हैं।
चौरेल की निवासी बाल कल्याण समिति बालोद की सदस्य श्रीमती दुखिया निषाद ने बताया कि मेला के दौरान आसपास के लगभग ढाई दर्जन गाँवों में उत्सव जैसा माहौल रहता है। इस मेले में लोगों की जरूरत के अनुसार हर तरह के सामान बिकने आता है। दूसरे दिन बासी मेला भी लगता है। इस संगम में आसपास के गाँवों के लोग अपने परिजनों की अस्थियों का भी विसर्जन करते हैं।
चौरेल के गौरैया धाम के बारे में एक किवदन्ती प्रचलित है कि यहाँ पर बहुत पहले गौरिया जाति का एक बाबा आया था। वह शिव भक्त था। वह साँपों को पकड़ कर दूर जंगल में छोड़ देता था, जिससे कि क्षेत्र में जान-माल का कोई नुकसान न हो सके। गौरिया बाबा अपने इस कार्य से काफी प्रसिद्ध हो गए। फिर उनकी मृत्यु के बाद उनके नाम के अनुरूप पीपल पेड़ के नीचे उनकी मूर्ति स्थापित कर दी गई। सर्प-दोष से मुक्ति के लिए लोग उनकी पूजा-अर्चना करने लगे। तब से यह स्थल “गौरैया धाम” कहलाने लगा। इसके अलावा और भी कुछ किंवदन्तियाँ प्रचलित है। इसमें शिव, पार्वती और गौरैया पक्षी की पौराणिक कथाएँ भी है।
वह स्थल टीलानुमा था। वहाँ पर मन्दिरों के निर्माण के लिए नींव की खुदाई के दौरान पत्थर की तरासी हुई अनेक मूर्तियाँ मिली है, जो मन्दिर परिसर में रखी गई हैं। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह फणि नागवंशीय शासकों का ग्रीष्मकालीन निवास स्थल रहा होगा। मन्दिर परिसर में एक स्थान पर बुद्ध की प्रतिमा भी है। ऐसे में बहुत सम्भव है कि यह बौद्धमय भारत का एक प्रमुख कला केन्द्र रहा हो। छत्तीसगढ़ के अलावा महाराष्ट्र के भोंगारे समाज के लोगों का बहुत पहले से निरन्तर बड़ी संख्या में मेला में आना यह प्रदर्शित करता है कि चौरेल न केवल सांस्कृतिक एकता की अनुपम बानगी है, वरन् इसकी अन्तर्राज्यीय प्रसिद्धि भी है।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत के 100 महान व्यक्तित्व में
शामिल रहे एक साधारण व्यक्ति।