ग़ज़ल

दरख़्त ऐसे भी कुछ लोगों ने लगाये हैं
जो नफ़रतों के ही देते हमेशा साये हैं
उन्हीं के सिर को झुकाने की ताक़ में रहते
वो जिनके शाने से ख़ुद अपना सिर टिकाये हैं
बहाया जिनके लिये हमनें ख़ूँ का हर क़तरा
ये वो ही लोग हैं जो दिख रहे पराये हैं
वो जिनको हमनें ज़माने की हर ख़ुशी दे दी
उन्हीं का दर्द कलेज़े में हम छुपाये हैं
जहाँ पे आके सँभलना था नई पीढ़ी को
क़दम तो देखो यहीं आ के डगमगाये हैं
वो बाज़ आये नहीं डसने से हमें प्रीतम
जिन्हें भी आज तलक दूध हम पिलाये हैं
प्रीतम श्रावस्तवी