वापिस जीवन न मिलना है ,जितना जीयो भरपूर पियो

वापिस जीवन न मिलना है ,जितना जीयो भरपूर पियो
मोक्ष धर्म सब सहज छलावा , मन मारे काहे होठ सियो
किसने देखा पुर्नजन्म और किसने देखा रूह भटकती
प्यासे मरना भी न अच्छा ,पीने की चाहत सदा खटकती
पीते-पीते भूशायी हो जा, संभल जरा उठकर फिर पीले
कर्ज मिले तो लेकर पीजा , मरने पर फिर कौन वसूले
इतना पी कुछ होश न हो कुछ ,धर्म शास्त्र सब स्वयं जला दे
एक तुम्हारा मदिरा मालिक , मन – मदिरा को साथ मिला दे
ये जो तुमसे कहते हैं कि , है भोग -विलास पाप का कारक
उनसे पूछो ये बतलाएँ , कौन है यहाँ पुण्य प्रताप का धारक
सब झूठे हैं सब कपटी हैं , तुमको भरमा जाते हैं
जो सुख भोग , भोग न पाए ‘ तुमसे वो छुड़वाते हैं
फिर कहता हूँ हाँ कहता हूँ काम से पुरुषार्थ है
मौज – मस्ती छोड़ दी तो, समझो जीवन व्यर्थ है