ख़्वाबों की नीलामी
सरफ़राज़ तमन्नाएँ, बोली लगीं बेमोल,
तक़दीर के बाज़ार में, बिक गए अर्ज़-ओ-क़ौल।
ग़रज़ के सौदागरों ने ख़्वाबों को तौला,
हसरत के कूचे में हर जज़्बा बेमौला।
तामीर-ए-आर्ज़ू भी, तहरीर-ए-मर्ज़ थी,
हयात की मजलिस में हर चाहत गरज़ थी।
गुमनाम तक़़दीरें, पसोपेश में हैं आज,
नीलाम हुए जज़्बात, साक़ी भी है लाजवाब।