चौपाई
चौपाई
विधा: चौपाई
आज का रस – भयानक रस
सृजन दृश्य – बाढ़ की विभिषिका
कुदरत ने आफत बरसाई।
बाढ़ तबाही लेकर आई।।
भरा हुआ है पानी सारा।
तेज बहे है जल की धारा।।
घर आँखों के आगे मिटता।
ठौर ठिकाना कुछ नहिँ दिखता।।
कहीं जानवर बहते जाते।
आँसू नयनों में भर आते।।
बर्बादी का दिखे नजारा।
कितनों ने है जीवन हारा।।
खाने के भी है अब लाले।
नष्ट हुए गेहूं के बाले ।।
टूटे सारे मन के सपने।
दूर हुए अपनों से अपने।।
कैसे कोई जान संभाले।
दुख के छाते बादल काले।।
सीमा शर्मा’अंशु’