प्रेम प्रथम दृष्टि में

क्या सच में होता है प्रेम प्रथम दृष्टि में किसी को?
नहीं नहीं हो नहीं सकता यह सम्भव,
होता होगा यह केवल क़िस्से कहानियों में,
पढ़ा था राम चरित्रमानस में,
हुआ था प्रेम प्रथम दृष्टि में,
राम और सीता के बीच।
किया है अति सुन्दर वर्णन,
तुलसी ने कुछ ऐसे:
पधारे जनकपुर रजकुमार दो,
अयोध्या से,
एक गोरे तो एक साँवले,
पहने थे पिताम्बर वस्त्र,
हाथों में थे सुशोभित धनुष बान,
थे सुकुमार किशोर अति सुन्दर,
सिंह समान गर्दन, विशाल भुजायें,
लाल कमल समान नेत्र सुन्दर,
दे रही थी शोभा गजमुक्ता की माला,
हो रहे थे करोड़ों कामदेव निछावर,
जाते जहाँ जहाँ दोनों भाई,
छा जाता परम आन्नद वहाँ वहाँ,
पुष्पों की करती वर्षा स्त्रियाँ,
थे ये राम और लक्ष्मण दो भाई।
थी पुष्पवाटिका राजा जनक की,
अत्यन्त रमणीय,
वृक्षों से घिरा था वहाँ,
सरोवर मनोहर, बढ़ा रहा था शोभा,
जिसकी मन्दिर मां गिरिजा का।
पहुँचे राम लक्ष्मण लेने पुष्प पूजा के लिये,
ले आज्ञा माली की लगे तोड़ने पुष्प,
पधारीं तभी सीता साथ सखियों के,
करने पूजा माँ गिरिजा की।
चली गई सखी एक करने,
दर्शन पुष्पवाटिका की।
हो गई चकित देख रजकुमार दो,
शोभा हो न सके वर्णित जिनकी,
दौड़ी देने समाचार ये सीता को।
जागी उत्कंठा मन में सीता के,
सम्भाले सौंदर्य को अपने
चल पड़ी धीमे धीमे छनकाती पायल,
लगी होने ध्वनि मधुर कंगन से भी,
देखा राम ने उस ओर
आ रही थी ध्वनि मनमोहनी,
जिस ओर से,
बन गये नयन चकोर राम के,
देख चन्द्ररूपी मुख सीता का,
थीं अपूर्व सुन्दरी सीता,
लजा कर भाग जाता अंधेरा भी,
फैल जाती चान्दनी जब,
सौन्दर्य की सीता के,
देखते रहे अपलक एक दूसरे को,
खो कर प्रेम में एक दूसरे के।
लगा यह प्रसंग है कोरा काल्पनिक,
है तुलसी की कहानी मनघड़न्त।
नहीं नहीं है अवश्य ही सत्य,
प्रेम कहानी सीता राम की,
हुई अनुभूति प्रेम की जब स्वयं को,
एक ही झलक में उसकी,
लगा ज्यों गया मिल मन मीत मुझे,
उतर गई थी छवि उसकी,
ह्रदय में द्वार से नयनों के,
अन्तर्मन से मान अपना,
अन्तोगत्वा गई थी हो शिकार मैं भी,
प्रथम द्ष्टि में प्रेम की,
नहीं है यह कल्पना कोरी।
उषा ज्योति