अधूरी दास्तान

तुझमें कैसी बसी पूर्ण भाव धुरी रहीं
जिसके बेगैर यह लेखनी अधूरी रहीं
मोड़ता हूँ अलग संजीवनी धार को
तोड़ता हूँ जैसे प्रतिज्ञा से प्यार को
हार जाता हूँ तुझपर लिखे भाव से
सुख पता हूँ तेरे शब्दों के छाँव से
बातें करुँ तो करुँ वह भी किससे
जताऊँ निभाऊँ अपना पन भी किससे
सताऊँ भी किसको मनाऊँ भी किसको
भुलाऊँ जो राहें तो बताए फिर मुझको
दिखावा दिखावे अब मंद हो गये हैं
बताए किसे अंत: में अंतर्द्वंद्व हो गये हैं
भावुक हो मुझको सँभालों सखी रे
व्याकुल हूँ मन से खँगालों सखी रे
जलाओं ना प्रेमी कूटी जो सखी हैं
बताओं बताओं त्रुटि जो सखी हैं