मगर वो निकला एक पत्थर

मानकर जिंदादिल जिसको, उम्मीदें हमने की थी।
मगर वो निकला एक पत्थर, चोट इस दिल पे लगी है।।
दिया तोहफा-ए-मोहब्बत, जिसको दिल अच्छा मानकर।
मतलबी वो बहुत निकला, मतलब कुछ हमसे नहीं है।।
मानकर जिन्दा जिसको——————————।।
भूल उससे नहीं यारों, भूल तो यह हमसे हुई है।
मोहब्बत हमने उससे की, खता यह हमसे हुई है।।
हमने समझा वो कोई गैर नहीं है हमारे।
मगर हमको तो उन्होंने, अपना समझा ही नहीं है।।
मानकर जिन्दा जिसको———————-।।
अच्छा होता कि यह तोहफ़ा, हम दे देते उनको।
सच्चे दिल से जो मोहब्बत, यारों करते हैं हमको।।
हमने सोचा कि वह हमसे नहीं रखता है दुश्मनी।
मगर वो हमसे है बेख्याल, खबर हमारी नहीं है।।
मानकर जिन्दा जिसको——————–।।
ऐसी उम्मीद अब तो हम, करेंगे नहीं किसी से।
प्यार जो हमसे करेगा, प्यार करेंगे हम उसी से।।
चमन-ए-जिंदगी जिसको मानकर, सींचा था खूं से।
मगर हमें नहीं मिली है खुशी, पसंद क्यों हम नहीं है।।
मानकर जिन्दा जिसको———————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)