मैं और तुम
मैं यानि पुरुष
इन शब्दो से मैं पुरुष समाज का प्रतिनिधित्व करने की कोशिश नही कर रहा हूँ, यह मेरे निजी विचार है। मैं नारी को मान, सम्मान देता हूँ और प्रेम करता हूँ जैसे मैं अपनी माँ, बहन, बेटी और जीवनसंगिनी को मान, सम्मान और प्रेम करता हूँ।
मैं डरा डरा सा रहता हूँ ।
मैं नही किसी से कहता हूँ ।।
क्या घुट घुट के मर जाऊँ मैं ।
मैं हर दम सब जो सहता हूँ ।।1
मैं तुझसे कुछ ना कहता हूँ ।
मैं तेरी भी ना सहता हूँ ।।
तुझको क्या बतलाऊ प्रिये ।
मैं तेरे बिन ना रहता हूँ ।।2
मैं समझ नही कुछ पाता हूँ ।
मैं कह भी नही कुछ पाता हूँ ।।
क्यो अंदर अंदर घुटता हूँ ।
मैं कर भी नही कुछ पाता हूँ ।।3
मैं प्यासा हूँ बस प्यार का तेरे ।
मैं निराश हुआ हूँ प्यार से तेरे ।।
मैं कहूँ किसी से क्या जानू ।
मैं तडफा हूँ बस प्यार मे तेरे ।।4
मैं हँसता हूँ दिन रात सुनो ।
मैं जगता हूँ दिन रात सुनो ।।
बस स्नेह का तेरे प्यासा हूँ ।
मैं भगता हूँ दिन रात सुनो ।।5
मैं तडफू हूँ दिन रात सुनो ।
मैं मरता हूँ बस बात सुनो ।।
बस कहता नही मैं सहता हूँ ।
मेरे मन के जज्बात सुनो ।।6
मेरे प्यार को, मेरी जान सुनो ।
मेरे दर्दो की भी चीख सुनो ।।
मुझको जिसने हैं जन्म दिया ।
उसका मुझपे अधिकार सुनो ।।7
मेरे तुम घर संसार सुनो ।
मेरे हृदय के उद्गार सुनो ।।
प्यार की ना तुम हँसी करो ।
मेरे तुम हो.. अधिकार सुनो ।।8
मैं नारी का सम्मान करूँ ।
मैं तुझको क्यो बदनाम करूँ ।।
प्रिये, नारी तो माँ भी हैं मेरी ।
मैं नारी का कैसे अपमान करूँ ।।9
मैं माँ का भी सम्मान करूँ ।
मैं बहन को भी तो प्यार करूँ ।।
बोलो, कैसे तुमसे मैं रूठ सकूँ ।
मैं बेटी का भी ध्यान करूँ ।।10
मैं ललित कला सा प्यारा हूँ ।
मैं हरि कथा सा न्यारा हूँ ।।
हाँ भावो का बस भूखा हूँ ।
मैं ना जाने क्यो रूखा हूँ ।।11
मैं बात नही यह जान सका ।
मैं तुझको ना पहचान सका ।।
अब, मैं तेरी ही तो सुनता हूँ ।
मैं तेरी फिर भी ना मान सका ।।12
मैं कायर हूँ या सहनशील ।
मैं पिछड़ा हूँ या विकासशील ।।
क्यो अर्थ नही ये जान सका ।
मैं डरा हुआ या धैर्यशील ।।13
मैं पुरुष बड़ा बेदर्दी हूँ ।
मैं अत्याचार का दर्जी हूँ ।।
मैं अवगुणो की खान भी हूँ ।
मैं तेरी ही तो मर्जी हूँ ।।14
आरोप लगाना आसा हैं ।
कुछ कह देना भी आसा हैं ।।
पुरूष बनो तुम जानो फिर ।
नारी बनना तो आसा हैं ।।15
अपनी माँ क्यो प्यारी हैं ।
फिर मेरी माँ क्यो बुरी लगे ।।
अपने तुमको प्यारे हैं ।
फिर मुझको अपने क्यो बुरे लगे ।।16
सवाल बहुत हैं जीवन मे ।
जवाब तुम्ही हो जीवन का ।।
जीवन का तुम उद्धार करो ।
मुझको केवल तुम प्यार करो ।।17
मुझको केवल तुम प्यार करो…2
तुम यानि नारी
यह विचार मेरे निजी विचार है, मेरा किसी भी मातृशक्ति को नाराज करने का उद्देश्य नही है। यदि किसी की भावनाए आहत होती है तो मैं हृदय से क्षमा प्रार्थी हूँ।
तुम डरी डरी सी कहती हो ।
और भागम-भाग मे रहती हो ।।
यूँतो, अपनालो जग को सारे ।
बस, अपनो से बचती रहती हो ।।1
तुम नर को धारण करती हो ।
फिर नर को तुम ही जनती हो ।।
और, तुमने जो संस्कार दिये ।
फिर, उनसे तुम ही डरती हो ।।2
तुम जगदम्बा तुम लक्ष्मी हो ।
तुम भक्ति हो तुम शक्ति हो ।।
तुम सारे जग से न्यारी हो ।
(क्योंकि…)
तुम नारी हो तुम नारी हो ।।3
तुम बेटी हो और बहन भी हो ।
तुम बहु भी हो और सास भी हो ।।
और, नारी का हर रूप भी हो ।
तुम गृहिणी का स्वरूप भी हो ।।4
तुम नारी हो कह सकती हो ।
तुम नारी हो सह सकती हो ।।
तुम बेटी हो बक सकती हो ।
तुम माँ भी हो (क्या) रह सकती हो ।।5
तुम बिगड़ो तो बिगड़ें घर हैं ।
तुम सुधरो तो सुधरे घर हैं ।।
तुम्ही घर की जान हो सुनलो ।
तुझमे बसता पूरा घर हैं ।।6
तुम तो तुम हो तुम बिन कुछ ना ।
तुम बिन जीवन सारा सुना ।।
तुम न्यारी हो तुम प्यारी हो ।
तुम बिन, जीवन सुनलो कुछ ना ।।7
तुम चाहो घर को स्वर्ग करो ।
तुम चाहो घर को नर्क करो ।।
तुम घर की रीड की हड्डी हो ।
तुम चाहो बेड़ा गर्क करो ।।8
तुम हस्ती हो घर हँसता हैं ।
तुम रोती हो तो घर रोता हैं ।।
तुम ही घर की, तो मालिक हो ।
तुम होती हो… तो घर होता हैं ।।9
तुम बिन सुना जग होता हैं ।
तुम बिन घर भी शव होता हैं ।।
तुम ही घर के प्राण हो प्यारी ।
तुम बिन सुख… कहा होता हैं ।।10
(पुरुष के लिए…)
अनुभूति स्पर्श की तुम हो ।
आधी नही पूरी संत भी तुम हो ।।
हरियाली का बसंत भी तुम हो ।
और, गृह क्लेश का अंत भी तुम हो ।।11
(पुरुष को…)
तुमने ॠण से मुक्त किया हैं ।
तुमने प्रेम से तृप्त किया हैं ।।
हाँ, तुमने त्याग के घर को अपने,
पुरुष को अपना वक्त दिया हैं ।।12
तुमने पुरुष को अंश दिया हैं ।
अपने अंश से वंश दिया हैं ।।
कैसे तेरे उपकार चुका दे ।
तुमने पुरूष को वंश दिया हैं ।।13
कुछ तुमको भी समझना होगा ।
कुछ उसको भी झुकना होगा ।।
जीवन नैया खुसहाल चले बस,
ऐसे हमको बस जीना होगा ।।14
ऐसे हमको बस जीना होगा…2