दिलों को जोड़ते थे जो वही डाकखाने कम हुए,

दिलों को जोड़ते थे जो वही डाकखाने कम हुए,
अब बढ़ गयीं नफ़रतें कचहरी के हिस्से हम हुए,
स्नेह,आदर,मर्यादाओं के चलन गर्त में समा गये
रिश्ते अब घर से मुकदमा बन के बाहर आ गये
बस चंद दिनों के मेहमां हो यूँ प्रेम के मौसम हुए
रहे इश्क के रिश्ते अधूरे और मुकम्मल गम हुए “