जीवन की कड़ियाँ

हमारे लिए क्यों खेली हो क्रीड़ा
बताओं सखी उर अंतः की पीड़ा
जीवन कठिन ये वैतरणी हुई हैं
आँखें तेरी क्यों निर्झरणी हुई हैं
जुड़ते बिखरते यह कैसी कड़ी हैं
बताओं विधाता ये कैसी घड़ी हैं
बताओं अंतर्द्वंद्व से कैसे लड़ी हैं
आँसुओं के घूँट क्यों पी कर खड़ी हैं