दोहे

विकारों में फंसी हुई पांच तत्व की काया।
चले नहाने गंगा में ,पकड़े रहते माया ।।
चलते चलते थक गए रास्ता भी गए भूल।
ठहर लगा लो ध्यान अब खिल जायेंगे फूल।।
अंतर्मन कीचड़ हुआ कमल खिले दिन रात।
मर्म समझ लो धर्म का बन जाएगी बात।।
सत्य सनातन भक्ति धर्म बोल रहे सब लोग।
कष्ट तो फिर भी बढ़ रहे कब समझोगे रोग।।
करनी कथनी के भेद में उलझा जीवन सारा।
साध लो अब मौन को हो जाए उजियारा।।