*हुआ सागर का मंथन तो, गरल भी साथ आता है (मुक्तक)*

हुआ सागर का मंथन तो, गरल भी साथ आता है (मुक्तक)
—————————————-
हुआ सागर का मंथन तो, गरल भी साथ आता है
जो धीरज छोड़ जाता है, उसे हर दुख सताता है
हृदय को शांत अविचल मौन, रखने की कला सीखो
जो अनुशासन से रहता है, वही अमृत को पाता है
————————-
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997 615 451