उसकी कहानी
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
“लिखें तो लिखें क्या ?”–व्यंग रचना
नयनों में तुम बस गए, रामलला अभिराम (गीत)
सगळां तीरथ जोवियां, बुझी न मन री प्यास।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
स्वयं में ईश्वर को देखना ध्यान है,
ज़िन्दगी का भी मोल होता है ,
I can’t promise to fix all of your problems, but I can promi
वो लुका-छिपी वो दहकता प्यार—
मोबाइल ने सबको है धंधे पे रखा,
रात में दुर्घटना का सबसे बड़ा कारण चकाचौंध है रेटीना पर पड़न
मन की संवेदना: अंतर्मन की व्यथा
इस ज़िंदगी में जो जरा आगे निकल गए