अभी तक

अभी तक
कलम बिकाऊ थी, कलमकार नहीं था
कला बिकाऊ थी, कलाकार नहीं था
पत्र बिकाऊ थे, पत्रकार नहीं था
मगर अब दौर बदल गया प्रिय,
अब सब बिक जाते हैं सत्ता के बाजार में |
~जितेन्द्र कुमार “सरकार”
अभी तक
कलम बिकाऊ थी, कलमकार नहीं था
कला बिकाऊ थी, कलाकार नहीं था
पत्र बिकाऊ थे, पत्रकार नहीं था
मगर अब दौर बदल गया प्रिय,
अब सब बिक जाते हैं सत्ता के बाजार में |
~जितेन्द्र कुमार “सरकार”