*तेवरी*

#देसी_ग़ज़ल (तेवरी)-
■ वो धूल हटाने को…।।
[प्रणय प्रभात]
क्या शेष रहा बोलो, अब जोड़ घटाने को।।
गुड़ पास नहीं है अब, गूंगों के चटाने को।।
मेहनत पे भरोसा है, ना काम मे दिलचस्पी।
पाखंड रचो दिन भर, भगवान पटाने को।।
अब थाम भी ले झाड़ू, तू सोच के तिनकों की।
छाई जो दिमाग़ों पर वो धूल हटाने को।।
हर रोज़ कही गज़लें, हर रोज़ रचे नग़मे।
मन मन से मिलाने को, दिल दिल से सटाने को।।
चुगने की ललक ले कर, सय्याद की बस्ती में।
क्यों भटक रहे प्यारे! तुम पूंछ कटाने को।।
हैं और मोहल्ले में, बेगार के दीवाने।
इक मैं ही नहीं बाक़ी, कुछ हाथ बंटाने को।।
हर शब्द रखा गिरवी, हर भाव किया विकृत।
जुमले भी नहीं छोड़े, रटने को रटाने को।।