सिमट के रह गए , परछाइयों में शौक़ से तारे
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ताज़ा ग़ज़ल 🌹
दिनांक _ 25/01/2025,,,
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1,,
सिमट के रह गए , परछाइयों में शौक़ से तारे,
सवालों में जवाबों को , उलझते देखते तारे।
2,,
वतन की लाज की ख़ातिर ,गँवाई जान जिसने भी ,
अमर उनको कहा सबने , भला क्या बोलते तारे ।
3,,
नज़र हर शख़्स पर रक्खी , कमाई नेकियाँ सारी,
वहीं हर राज़ बरखुरदार , आकर खोलते तारे ।
4,,
शहीदों की ज़माने में , विदाई हो नहीं सकती ,
पलटते साल हैं लेकिन, ज़ुबां चुप झेलते तारे ।
5,,
हुआ आज़ाद जब ये देश, खोया है सभी ने कुछ,
सने हैं खून में अल्फ़ाज़, क्या कुछ कह गए तारे ।
6,,
मुहब्बत देश की कुर्बान, हो जाती हमेशा ही ,
यही जज़्बा सिखाता “नील”, चमके चाँद से तारे ।
✍️नील रूहानी,,,,25/1/25,,,,,,,,🥰
( नीलोफर खान)