माटी
माटी
मेरा परिचय माटी से, और माटी ही मेरा परिचय है।
जो कुछ है सब माटी से, माटी ही जीवन संजय है।।
क्या मैं इतिहास कहूं, या कि कहूं उत्थान पतन।
जो कुछ हुआ या होना है, सब कुछ माटी का अभिनय है।।
अब माटी का परिचय क्या दूं, वह चिर परिचित है जन-जन से।
महा सिंधु या गिरिराज हिमांचल, माटी के वे लघु जीवन से।।
मैं माटी का विस्तार कहूं क्या, जिसकी लघुता विराट का दर्शन है।
थल में नभ में और सलिल में, बस उसका ही नर्तन है।।
मेरे मन की तो प्रीत यही, मेरे आत्म प्राण अवबोधन।
सृजन विध्वंस या संपालन, काल श्रेणी भी माटी का संगोपन है।।
मेरे जीवन प्राण समर्पित माटी को, माटी को अनंत बार नमन।
अब जग सारा माटी का,( तू )ईश्वर रूप चैतन्य सुमन।।
डॉ रवींद्र सोनवाने बालाघाट